अनुभवों से उपजे कुछ सबक

 


अनुभवों से उपजे कुछ सबक



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अनुभवों से उपजे कुछ सबक




कुछ न कहकर भी, सब कह दिया हमने।

एक गुनाह करना था, बस कर दिया हमने।


अधूरी ख्वाहिशे पुरुषार्थ से, पूरी करें एक दिन।

कुछ नहीं किस्मत भरोसे, जो लिख दिया हमने।


हर तरफ खामोशियों का, जाल जैसा बुन गया।

कुछ इंकलाबी बात कर, सब सिल दिया हमने।


कुछ पुराने से पन्नों में, दफन कर दिया है अब।

स्याही में हर्फ़ बेबसी के, सब घोल दिया हमने।


खुले आसमान के नीचे, जीना था मुझको।

बस सोचकर इतना, घरौंदा ढक दिया हमने।


कभी हम हाशिये पर थे, पर अब नहीं हैं।

सबसे जब दिल का लगाना, कम कर दिया हमने।


रंग हर तजुर्बे के, अलग से हो भी सकते है।

हकीकत रंग गहरा है, तुम्हे जो मल दिया हमने।


अभी हम कुछ नहीं शायद, कभी कुछ हो भी सकते हैं।

हया का हर लबादा अब, जबसे धुल दिया हमने।


यह दुनियाँ पत्थरों का, कोई निष्ठुर सा बगीचा है।

दरख्तों की हिफाज़त को, दरबान कर दिया हमने।


यह रंगत कांच की है, या कि कोई मोम है शायद।

बदलते सीरतों का एक हवाला, गढ़ दिया हमने।


अभी हम हैं निशाने पर, किस्मत की लकीरों के।

मेरा पौरुष अभी बाकीं है, किस्सा लिख दिया हमने।


निभाकर साथ दुनियाँ का, हों रुखसत सादगी से हम।

यही सब सोचकर, शिष्ट सा कुछ ढक लिया हमने।

                                                    सचिन 'निडर'




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